poem on pani
मैं उस पानी की बूँद हूँ
जो गगन में
बदलो संग घूमती हूँ
मैं आती हूँ
ऊन प्यसो के लिए
जो बरसों से
प्यास दबाए बैठे हैं
कृषक अपने परिक्षृम से
इस मिट्टी को
अर्पण करते हैं
खुल जाती हैआँखे उनकी
जब मुख के निकट
मैं जाती हूँ
खड़े हो जाते हैं
हिमालय सा
जब तन मे मैं
समाती हूँ
जो गगन में
बदलो संग घूमती हूँ
मैं आती हूँ
ऊन प्यसो के लिए
जो बरसों से
प्यास दबाए बैठे हैं
कृषक अपने परिक्षृम से
इस मिट्टी को
अर्पण करते हैं
खुल जाती हैआँखे उनकी
जब मुख के निकट
मैं जाती हूँ
खड़े हो जाते हैं
हिमालय सा
जब तन मे मैं
समाती हूँ
poem on pani
Reviewed by Hindienglishpoetry
on
1:00 PM
Rating:
No comments:
thanks for visiting blog